Wednesday 10 October 2012

प्राचीन वैदिक राष्ट्रगीत

ओम् आ ब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम
आस्मिन राष्टे राजन्यः इषव्:
शूरो महारथो जायताम्
दोग्ध्री धेनुर्वेढाऽनड्वानाशुः सप्ति:
पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः
सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
फलिन्यो न ओषधयः पच्यन्तां
योगक्षेमो नः कल्पताम्।

समानी व आकूति: समाना हृदयानि व:
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति


अर्थात =
ब्रह्मन स्वराष्टृ में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी।
क्षत्रिय महारथी हों, शत्रुविनाशकारी।
होंवें दुधारु गौंएं, पशु अश्व आशुवाही।
आधार राष्टृ की हों नारी सुभग सदा ही।
बलवान सभ्य योद्धा, यजमानपुत्र होंवें।
इच्छानुसार वर्षें पर्जन्य ताप धोवें।
फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी।
हो योगक्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी।

सब लोगों का सव-तप, निश्चय और भाव अभिप्राय एक रहे।
सब लोगों के हृदय एक समान हों, तथा लोगों के मन
समान हों जिससे  लोगों का परस्पर कार्य हो सर्वत्र ।।।

1 comment:

  1. साभार धन्यवाद ! भारत माता की जय |

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